नई दिल्ली : गुर्दे की बीमारियों के प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए, मैक्स हॉस्पिटल के इंस्टीट्यूट ऑफ रीनल साइंसेज ने 2 किमी वॉकथॉन का आयोजन किया। विश्व गुर्दा दिवस 2019 के अवसर पर जागरूकता बढ़ाने के लिए आयाजित इस वॉकथॉन में डॉक्टरों, स्थानीय निवासियों और गुर्दा प्रत्यारोपण और डायलिसिस के रोगियों सहित 200 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।
इस वर्ष के विष्व गुर्दा दिवस का विषय है : ’हर जगह हर किसी के लिए किडनी स्वास्थ्य’। वॉकथॉन को मैक्स हॉस्पिटल से रवाना किया गया।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, के नेफ्रोलॉजी और रीनल ट्रांसप्लांट के निदेषक डॉ. नीरू पी. अग्रवाल ने कहा, ‘‘क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के मामलों में दो तिहाई से अधिक मामलों के लिए मधुमेह और उच्च रक्तचाप जिम्मेदार होते हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के हाल के आंकड़ों के अनुसार, शहरी भारतीय वयस्क आबादी में मधुमेह और उच्च रक्तचाप दोनों का प्रकोप 20 प्रतिषत तक बढ़ गया है। भारत में जीवन शैली से संबंधित विभिन्न बीमारियों के बढ़ते प्रसार के साथ, पिछले दशक में गुर्दे की बीमारी का प्रसार भी लगभग दोगुना हो गया है और इसके और बढ़ने की उम्मीद है। गैर-संचारी रोगों (मधुमेह और उच्च रक्तचाप) के बढ़ते प्रकोप और बढ़ते बोझ के अलावा, कई लोग ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) दवाओं और भारी धातुओं वाले पारंपरिक दवाओं के इस्तेमाल के कारण गुर्दे की बीमारियों से प्रभावित होते हैं जो गुर्दे को नुकसान पहुंचाते हैं। जीवन शैली में बदलाव, व्यायाम की कमी और मोटापा भी गुर्दे की बीमारियों में वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं।’’
भारत में क्रोनिक किडनी रोगों का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। यहां प्रति 10 लाख आबादी (पीएमपी) में करीब 800 लोग सीकेडी से प्रभावित हैं और प्रति 10 लाख आबादी (पीएमपी) में एडवांस किडनी फेल्योर से पीड़ित 230 लोगों को डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण के रूप में कुछ प्रकार के रीनल रिप्लेसमेंट थेरेपी की जरूरत होती है।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल,के नेफ्रोलॉजी और किडनी ट्रांसप्लांट विभाग के निदेषक डॉ. मनोज के. सिंघल ने कहा, ‘‘स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे के मामले में, इतनी अधिक संख्या में इस बीमारी से पीड़ित रोगियों की देखभाल के लिए संसाधन और कौशल वर्तमान में भारत में मौजूद नहीं है। विशेषज्ञों और उपचार तक सीमित पहुंच की समस्या से निपटने के लिए, निवारक उपायों जैसे महत्वपूर्ण उपायों को आजमाने की कोषिष करनी होगी और निवारक उपायों से किडनी की बीमारियों की घटनाओं को कम करने का प्रयास करना होगा। यह स्पष्ट है कि गुर्दे की बीमारी और इसके उन्नत चरण ‘एंड स्टेज रीनल डिजीज’ का इलाज महंगा है और औसत भारतीय की पहुंच से परे है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि क्रोनिक किडनी रोग की रोकथाम आम लोगों का भी लक्ष्य होना चाहिए।’’
चूंकि इसके कारण अलग- अलग हो सकते हैं, इसलिए इसके लक्षण भी अलग- अलग हो सकते हैं। फिर भी, इसके कुछ बहुत ही सामान्य लक्षण हैं – बहुत अधिक या बहुत कम पेशाब होना, या पेषाब में रक्त या प्रोटीन का आना और रक्त में रसायनों का असामान्य स्तर। लेकिन अगर बीमारी जीवाणु संक्रमण के कारण होती है, तो पहला संकेत तेज बुखार है। गुर्दे की मध्यम या हल्की बीमारियों के मामले में, कभी-कभी कोई लक्षण नहीं होते हैं।
हालांकि असली समस्या बीमारी के निदान में है क्योंकि अगर कोई ट्यूमर या किडनी में सूजन हो, तो डॉक्टरों के लिए केवल किडनी महसूस करके जांच करना मुश्किल हो जाता है। इसलिए सीरम क्रिएटिनिन जांच की जाती है जिससे किडनी के कार्य (ईजीएफआर) का पता चलता है, और मूत्र के नमूनों की जाँच से प्रोटीन, षुगर, रक्त और कीटोन्स आदि की जाँच की जाती है।
डॉ. अग्रवाल ने कहा, ‘‘एंड स्टेज किडनी फेल्योर केवल डायलिसिस या गुर्दा प्रत्यारोपण द्वारा नियंत्रित होती है। डायलिसिस सप्ताह में दो बार या अधिक बार की जा सकती है जो कि रोग की स्थिति पर निर्भर करता है। प्रत्यारोपण के मामले में, रोगी में एक नई या स्वस्थ किडनी प्रत्यारोपित की जाती है। प्रत्यारोपित की गई किडनी 90 प्रतिशत से अधिक मामलों में काम करती है। इसके साथ एकमात्र चिंता की बात षरीर के द्वारा इसे अस्वीकृत कर देना है। लेकिन दवा और नैदानिक तकनीकों में प्रगति के साथ, इसका जोखिम काफी कम हो गया है और रोगी बेहतर गुणवत्ता पूर्ण जीवन जीता है।’’