नई दिल्ली / साहित्य अकादेमी के स्थापना दिवस के अवसर पर ’महात्मा गाँधी : एक लेखक और वक्ता के रूप में’ विषयक व्याख्यान देते हुए रामचंद्र गुहा ने कहा कि गाँधी रवींद्रनाथ टैगोर की तरह सृजनात्मक लेखक तो नहीं थे, लेकिन उनका लेखन विभिन्न भाषाओं में, जिनमें गुजराती, अंग्रेज़ी और हिंदी थी, में अलग-अलग तरीकों से व्यक्त होता था। गुजराती में जहाँ वे भारतीय जनता से संवाद करते दीखते हैं वहीं अंग्रेज़ी में उनका लेखन ब्रिटिश सरकार से राजनीतिक संवाद करता हुआ नज़र आता है। उन्होंने उनके लेखन के तीन उदाहरण पेश किए, जिनमें से पहला प्राकृतिक आपदा से संबंधित था जो सन् 1934 के बिहार-भूकंप के वर्णन का था। दूसरा मानवनिर्मित आपदा के बारे में था जो 1921 में अहयोग आंदोलन के दौरान प्रिंस वेल्स के बम्बई आगमन के विरोध को लेकर था। तीसरा और अंतिम उदाहरण 1940 में सर एंड्रूज की श्रद्धांजलि से जुड़ा हुआ था। इन उदाहरणों के सहारे उन्होंने कहा कि इन तीनों में उनकी भाषा घटनाओं के अनुसार परिवर्तित हुई है। गाँधी भूकंप की घटना में जानमाल को हुए नुकसान को बड़ी संवेदना से वर्णित करते हैं तो बम्बई की घटना में हिंदू-मुस्लिमों द्वारा पारसी और ईसाइयों पर किए गए हमलों की भर्त्सना करते हैं।
लुई फिशर की पुस्तक के एक उदाहरण से उन्होंने बताया कि गाँधी एक वक्ता के रूप में आक्रामक नहीं थे बल्कि बोलते समय बहुत ही सहज ढंग से अपनी बात रखते थे। उन्होंने गाँधी के हिंद स्वराज के एक उदाहरण के आधार पर बताया कि गाँधी का पूरा लेखन चार मुख्य विचारों – सामाजिक परिवर्तन, आर्थिक उन्नति, सांस्कृतिक एकता और अहिंसा पर केंद्रित है।
उन्होंने गाँधी को एक वक्ता के रूप में बहुत संयत पाया। उन्होंने गाँधी द्वारा संपादित इंडियन ओपीनियन, यंग इंडिया, हरिजन के उदाहरणों द्वारा बताया कि इनके ज़रिये हम उनके लेखन में आए विभिन्न बदलावों को आसानी से लक्षित कर सकते हैं।
रामचंद्र गुहा ने कहा कि गाँधी के विपुल लेखन का महत्त्व तब और बढ़ जाता है जब हम देखते हैं कि उनका यह लेखन किसी तय स्थान पर बैठकर नहीं हुआ है, बल्कि तमाम यात्राओं और स्थानों पर अनेक काम करने के बीच उन्होंने ऐसा संभव कर दिखाया है। उन्होंने कहा कि के. स्वामीनाथन और सी.एन. पटेल द्वारा गाँधी वांग्मय के 97 खंडों का संपादन एक विश्वस्तरीय व्यवस्थित कार्य है।
रामचंद्र गुहा ने श्रोताओं द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि गाँधी को वकील के रूप में हम विफल भले ही कह लें किंतु भारतीय जनमानस से उनका संवाद नई ऊर्जा का संचरण करने वाला रहा है और जनता के अधिकारों की पक्षधरता उनका प्रमुख लक्ष्य रहा है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में, अकादेमी के पूर्व सचिव इंद्रनाथ चौधुरी ने पुस्तकें और अंगवस्त्रम् भेंट कर रामचंद्र गुहा का स्वागत किया। साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने साहित्य अकादेमी की अब तक की यात्रा के बारे में बताते हुए रामचंद्र गुहा का श्रोताओं से विधिवत् परिचय करवाया। उन्होंने बताया कि साहित्य अकादेमी स्थापना व्याख्यान कपिला वात्स्यायन, एस.एल. भैरप्पा और सीताकांत महापात्र जैसे प्रख्यात विद्वानों द्वारा दिया जा चुका है।
इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी, विद्वान, लेखक और छात्र मौजूद थे।