नई दिल्ली। पश्चिमी दिल्ली संसदीय सीट पर इस बार त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है। मुद्दा विकास का होगा, लेकिन पाटिNयां अलग-अलग नाम पर मतदाताओं को लुभाने में जुटी हुई हैं।
२००८ में पश्चिमी दिल्ली संसदीय सीट के अस्तित्व के बाद यह तीसरा लोकसभा चुनाव हैं, जिसमें २३ प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला २३. ६७ लाख मतदाता करेंगे।
भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों के बीच विकास के मुद्दे पर कांटे की टक्कर है, जिनके भाग्य का फैसला करने वालों का समर्थन हासिल करने के लिए प्रत्याशियों की दौड़ तेज हो चुकी है। रोड शो, नुक्कड़ सभा के अलावा सोशल मीडिया का भी इस बार बढ़-चढ़कर इस्तेमाल किया जा रहा है।
दक्षिणी और बाहरी दिल्ली के क्षेत्रों को मिलाकर बनी पश्चिमी लोकसभा सीट से २००९ में कांग्रेस तो २०१४ में भाजपा प्रत्याशी को जीत मिली। इस सीट पर जीत हार का फैसला करने में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी)-पूर्वांचली मतदाताओं की भूमिका अहम होगी। तीनों पाटिNयों को कैडर वोट से काफी उम्मीदें हैं और इसी दम पर जीत का दावा कर रहे हैं।
भाजपा और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार एक ही बिरादरी के हैं, जबकि तीसरे प्रत्याशी पूर्वांचल से ताल्लुक रखते हैं। पाटिNयों की कोशिश कैडर वोट के अलावा शेष वोटरों को अपने पक्ष में करने की है। राजनीतिक पाटियां दावा कर रही हैं कि इस बार के चुनाव में जातिगत समीकरण का कोई खास मायने नहीं है। जानकारों का कहना है कि क्षेत्र में विकास के मुद्दे को लेकर ही जनता वोट करेगी।