योग का संदेश यह है कि विश्व बाजार नहीं बल्कि एक परिवार है। (लेखक, मंजू बागरिया)
भीतर मुड़कर अपने वास्तविक स्वरूप से जुड़ना ही योग है योग में हम अपने वास्तविक, आत्मिक स्वरूप को जान कर उसी में स्थित हो जाते हैं। मनुष्य की असली पहचान इस देह से अलग, देह को चलाने वाली एक चैतन्य शक्ति आत्मा के रूप में है इसप्रकार हम सभी आत्माओं के पिता परमात्मा शिव निराकार है। योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ या जुड़ना। आत्मा का परमात्मा से जुड़ना ही योग कहलाता है। दूसरे शब्दों में अपने आप को आत्मा समझ कर परमपिता परमात्मा, जो कि ज्ञान, गुण व शक्तियों के सागर है, उनके गुणों और शक्तियों को स्वयं में अनुभव करना ही योग है।
सुख-दुख, मान-अपमान, लाभ-हानि, ईर्ष्या-नफरत, राग-द्वेष का असर योगी पर नहीं पड़ता। भयंकर से भयंकर परिस्थितियां भी योगी को तिल भर भी हिला नहीं सकती।
असलियत में जब हम अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित होते हैं तब हम योगी कहलाते हैं। योग मुक्ति-जीवनमुक्ति मार्ग के साथ-साथ एक जीवनदर्शन भी है। लेकिन आज चार आसन सीखकर कोई योगी, योगाचार्य, योग गुरु कहलाने लगता है। इससे योग की गरिमा बढ़ नहीं रही है बल्कि योग की उस उच्च स्थिति को धूमिल किया जा रहा है। आज योग के नाम पर कुछ एक शारीरिक कसरतों को बढ़ावा दिया जा रहा है। कहीं ऐसा ना हो कि आने वाली पीढ़ियां आसन- प्राणायाम को ही वास्तविक योग मानने लगे।
➡️ भारत का प्राचीन राजयोग -
विश्व में भारत की पहचान आध्यात्मिक योग गुरु के रूप में रही है परंतु कौन सा योग ? इसके बारे में आज विरले ही जानते हैं। योगाशास्त्र में विभिन्न प्रकार के योग जैसे कि भौतिक योग, मानसिक योग, बौद्धिक योग एवं आध्यात्मिक योग इत्यादि का वर्णन है। आध्यात्मिक योग का ही भाग है राजयोग। इसका वर्णन प्राचीनतम ग्रंथ सर्वशास्त्रमयी शिरोमणि श्रीमद्भगवद्गीता में भी आता है। राजयोग की शिक्षा स्वयं निराकार परमपिता परमात्मा शिव ने इस धरा पर अवतरित होकर साकार माध्यम प्रजापिता ब्रह्मा के द्वारा दी। राजयोग से मनुष्यात्मा की सुसुप्त शक्तियां जागृत होती है जिससे बड़े से बड़े लक्ष्यों को भी बहुत आसानी से हासिल करके सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा जा सकता है। पतंजलि के अष्टांग योग के अंतिम दिन आयाम धारणा, ध्यान और समाधि भी राजयोग में समाहित है। WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार आज 90% बीमारियां Psychosomatic है राजयोग से मनुष्य का मन शांत, स्वस्थ व मजबूत बनता है जिससे कि तन को स्वस्थ रखने में भी मदद मिलती है।
➡️ योग का वर्तमान स्वरूप -
कुछ लोग धन कमाने के लिए योग का व्यापारीकरण करने पर उतर आए हैं। अब से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। जिस तरह ज्योतिष के कारोबारीकरण से लोगों का विश्वास उससे उठने लगा, धर्म के व्यवसायीकरण से उसके प्रति श्रद्धा कम होने लगी थी, ठीक उसी तरह योग का व्यवसायिक प्रयोग बढ़ने से लोगों का इससे भी विश्वास उठ सकता है। योग से बीमारियां दूर होती है लेकिन योग केवल बीमारियों को दूर करता है, ऐसा प्रचारित करना उचित नहीं है। योग मुक्ति व जीवन मुक्ति का मार्ग है। जब कोई मनुष्य योग के मार्ग पर चलता है तो उसका तन व मन अपने आप ही स्वस्थ व मजबूत हो जाता है।
➡️ योग और योगा -
योग जब पश्चिमी देशों में गया तो उसके आसनों को ऐसे पेश किया गया जैसे कि यह शरीर को आकर्षित बनाने का कोई नुस्खा हो। नतीजा यह निकला कि योग से अध्यात्मिकता दूर हो गई और योग, “योगा” बनकर रह गया। जबकि “योग” अच्छे और सच्चे मानव का निर्माण करता है और “योगा” केवल बीमारियों को दूर कर शरीर को सुडौल बनाने में मदद करता है।
जब योग से अध्यात्मिकता निकल जाती है तो वह व्यायाम की श्रेणी में आ जाता है। ऐसे नहीं कि जो कठिन से कठिन आसन कर ले वह महान या बङा योगी हो गया। वैसे तो एक जिम्नास्ट की कमर ज्यादा लचीली होती है परंतु वह महान योगी नहीं कहला सकता क्योंकि वह केवल शरीर के स्तर पर टिका हुआ है। आत्मा का ज्ञान वहां दूर-दूर तक नहीं है। योग न तो प्राणायाम और आसन का नाम है, न ही दिन भर में केवल एक-दो घंटे अभ्यास करने की कोई कठिन क्रिया है बल्कि यह तो निरंतर ईश्वरीय लगन, स्वरूप चिंतन व ईश्वरीय स्मृति में स्थित होने का नाम है।
➡️ विभिन्न प्रकार के आसन -
प्राचीन समय में अनेकों ऋषि - मुनि जंगल में तपस्या करते थे उनकें सामने सवाल यह था कि शरीर का रख रखाव कैसे किया जाए ? इसके लिए उन्होंने गहन-चिंतन के बाद निष्कर्ष निकाला कि पशु - पक्षी किसी एक आकृति के माध्यम से शरीर को स्वस्थ बनाए रखते हैं इसलिए सर्प को देखकर सर्पासन, मछली को देखकर मत्स्यासन, बगुले को देखकर बकासन, पर्वत को देखकर पर्वतासन, पेड़ को देखकर भी वृक्षासन इत्यादि अनेक आसनों का निर्माण किया।
उनका यह विचार था कि इन आसनों के आधार से मनुष्य जब इन प्राकृतिक आकृतियों से गुजरेगा तो उसका शरीर ऊर्जावान व निरोगी बना रहेगा। समय के साथ-साथ अनुसंधान किया गया कि कौन से आसन, शरीर के किस हिस्से पर असर डालते हैं और उससे कौनसे रोग ठीक होते हैं। इस प्रकार योग का वैज्ञानिक रूप प्रस्तुत हुआ।
आसन, योग का स्थूल और सूक्ष्म भाग है यह शरीर को स्वस्थ व निरोगी बनाए रखने में मदद करता है।
इस प्रकार आसन व प्राणायाम का उद्देश्य केवल बीमारियां दूर करना नहीं बल्कि कुंडलिनी शक्ति को जगाकर चित्त में पड़े हुए बुरे संस्कारों का नाश करना है, जिससे एक योगी का चित्त शुद्ध हो और उसकी आध्यात्मिक यात्रा आगे बढ़ सके।
➡️ नियमित दिनचर्या का हिस्सा बनाएं -
हमारी इंद्रियां हमेशा बाहर की ओर ही भागती रहती है। इन बाहर भागती हुई इंद्रियों से उर्जा भी बाहर की ओर बह जाती है और चित्त अस्थिर रहता है। सभी ज्ञानेंद्रियों और कर्मेंद्रियों को अपने नियंत्रण में करना, यह योग की उच्चतम अवस्थाओं में से एक है। इस प्रकार योग के मार्ग पर चलकर सच्चा सुख-शांति व अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त किया जा सकता है। योग वास्तव में एक दिन का इवेंट नहीं है। आज अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम योग को खाने और सोने की तरह ही अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं और उसके बाद देखना कि जीवन का प्रत्येक दिन उत्सव बन जाएगा।