युवा विश्व का आधार स्तंभ है भौतिक व आध्यात्मिक जगत में युवा विश्व की आशा है। (लेखक, मंजू बागरिया)
युवावस्था एक वरदान है। लेकिन आज का युवक स्वयं को अनेक बंधनों में जकड़ा हुआ अनुभव करता है और अनेक प्रकार के मानसिक विकारों/मनोविकारों से घिरा हुआ है। विवशता के कारण वह बेचैन, उदास-निराश, हैरान-परेशान, हताश है। युवा की वर्तमान स्थिति और उसकी दिशाहीनता से सब अच्छी तरह से परिचित है। अब आवश्यकता है इसका निवारण करने की।
मानव मात्र की उन्नति और सामाजिक,आध्यात्मिक और भौतिक परिवर्तन के लिए युवा शक्ति सबसे बड़ा स्त्रोत है जिस प्रकार पर्वतों के शीर्ष को ढकी हुई
बर्फ जल का स्त्रोत है, जितनी शीतल व शांत, उतनी ही भयानक-खतरनाक भी साबित हो सकती है ठीक उसी प्रकार युवाशक्ति भी उस हिम, नीर की तरह है जिसे सही दिशा की आवश्यकता है।
आज का युग जहां दुख-अशांति, भ्रष्टाचार और विभिन्न समस्याओं रूपी सागर में डूबता जा रहा है। चारों और अभाव ही अभाव है परंतु युवा शक्ति का कोई अभाव नहीं। जिस द्वारा इस विश्व को ऊपर लाया जा सकता है। कठोर परिश्रम, देशभक्ति, विश्व बंधुत्व तथा सेवाभाव द्वारा इस विश्व को सुखमय संसार बना सकते हैं।
अपनी असीमित
शक्ति के सही दिशा में उपयोग द्वारा समाज, देश व विश्व को उच्च शिखर पर ले जा सकते है। यह वह शक्ति है जिसके द्वारा स्वर्णिम भविष्य के स्वपन को साकार कर सकते हैं, असंभव को संभव कर सकते हैं। युवावस्था ही जीवन का वह भाग है जहां उमंग-उत्साह अपने सर्वोच्च शिखर पर होता है। विश्व को वर्तमान भयावह समय से निकाल सुखमय बना सकते हैं ज्वाला को शीतल, खूनी क्रांति को रक्तहीन शांति में बदलना युवा शक्ति के लिए सहज है।
यही शक्ति एक वरदान में परिवर्तित अनेकों के लिए वरदानी रूप बन सकती है इस वरदान को विकृत संकल्पों के द्वारा अभिशाप के रूप में परिवर्तन होने से बचाना सभी बुद्धिजीवी नागरिकों का मौलिक कर्तव्य है। कितनी विशाल व श्रेष्ठ संकल्पना और रचना युवा भविष्य की कर सकता है।
युवा काल ही जीवन का वह सर्वश्रेष्ठ एवं महत्वपूर्ण भाग होता है जहां किसी भी प्रकार का त्याग करने में संकोच नहीं।
युवाकाल का एक उच्च-आदर्श निर्णय हजारों, लाखों, करोड़ों के लिए एक आदर्श मार्गदर्शन और जीवन दर्शन साबित हो सकता है।
युवावर्ग की महानता की महीनता को न जानने के कारण आज तक युवा की इस शक्ति का उपयोग नहीं हो सका। शक्ति की प्रत्यक्षता भी तभी हो पाएगी जब शक्ति की ज्वाला को समझ सकेंगे। युवा अपनी शक्ति की प्रत्यक्षता में विश्वास रखता है न कि उसे वर्णन करने में। युवा ही मन में शुद्ध-श्रेष्ठ संकल्प, मधुर-सत्य वचन, सुखमय-प्रेरणादायक कर्म, आत्मिक दृष्टि व भाईचारे की भावना रख, अपनी शक्ति को एक ऐसे सही सांचे में डालकर स्वयं परिवर्तित हो, एक नया मोड़ काल के आने वाली युवाओं को दे सकता है।
इसलिए युवकों को समय पर सभी दोषों से मुक्त कर आत्मिक जागृति लाना अति आवश्यक है। बुद्धिजीवी नागरिकों , साहित्यकारों एवं लेखकों को इस अथाह शक्ति से भरपूर युवकों का मार्गदर्शन कर भविष्य की स्वर्णिम आशाओं को पूरा करने व प्रगति की ओर अग्रसर करने में अपना अमूल्य योगदान देना होगा।
➡️ व्यक्तित्व निर्माण में संस्कारों का महत्व -
अब सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि संस्कार है क्या ? इस विषय में विभिन्न मत-मान्यताएं है। सबसे तर्कसम्मत मत यह है कि संस्कार वे प्रभाव अथवा अनुभव है जो कर्मो को करने से मनुष्य प्राप्त करता है। किए हुए कर्मो से जो अनुभव प्राप्त होते हैं उनका प्रभाव मनुष्य के मन और बुद्धि पर पड़ता है। यह प्रभाव केवल एक जन्म के कर्मों के नहीं बल्कि अनेक जन्मों के कर्मों के होते हैं।
आज संपूर्ण मनुष्य जगत के संस्कार बहिर्मुखी अर्थात भौतिकता/ स्थूलता से ज्यादा रंगे हुए नजर आते हैं। इस बहिर्मुखता को अंतर्मुखता में परिवर्तन करने की आवश्यकता है।
➡️ शारीरिक बल के साथ आत्मिक बल भी अत्यावश्यक -
युवा को न केवल शारीरिक बल बल्कि उससे कहीं ज्यादा आत्मिक बल की आवश्यकता है। शारीरिक शक्ति बढ़ाने के लिए तो उसके पास कई साधन उपलब्ध है और वह महसूस भी करता है शारीरिक बल होना चाहिए। परंतु आत्मिक बल क्या चीज है ? शायद वह जानता ही नहीं। उसे यह नहीं मालूम कि आत्मबल शरीरबल से श्रेष्ठ है जो काम शरीरबल नहीं कर पाता वह आत्मबल कर देता है।
स्वयं की तथा ईश्वर की यथार्थ पहचान से ही आत्मबल आ सकता है इस यथार्थ पहचान के लिए नियम, संयम, धारणा व मर्यादा आवश्यक है जिसके अभाव में आत्मानुभूति व ईश्वरानुभूति नहीं हो सकती। अनुभूतियां मन व बुद्धि करते हैं। मन व बुद्धि आत्मा के ही अंग है। मन-बुद्धि को स्वस्थ व शक्तिशाली बनाना ही आत्मा को बलवान बनाना है। शरीर को स्वस्थ रखना जितना आवश्यक है उससे कहीं ज्यादा मन-बुद्धि को स्वस्थ रखना आवश्यक है।
अश्लील और कामोत्तेजक साहित्य पढ़ना, अश्लील दृश्य, सिनेमा देखना, इस प्रकार के सस्ते मनोरंजन के साधनों से मन और बुद्धि दूषित होते हैं। आज का सिनेमा वास्तव में बहलाव का नहीं परंतु बहकाव का साधन है। जिससे युवक कर्म भ्रष्ट होता है और अंततोगत्वा दुख व संकट को निमंत्रण देता है। युवा पीढ़ी को जानना चाहिए कि नियम व संयम ही जीवन का श्रृंगार है। सुविचार व श्रेष्ठ कर्म ही सच्चरित्र के लक्षण है और सच्चरित्र ही समाज व राष्ट्र की पूंजी है।
युवाओं को सजग व सतर्क होना होगा कि सर्व महंगाई का कारण है चरित्र की महंगाई। चरित्र की महंगाई युवा को सबसे पहले दूर करनी होगी, तत्पश्चात ही सर्व प्रकार की महंगाई दूर हो सकती है और सुखी समाज की स्थापना हो सकती है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत विश्व का सबसे युवा देश है जो कि इसके उज्ज्वल भविष्य का सांकेतिक प्रमाण है।