नई दिल्ली। यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति किसी बाहरी व्यक्ति के नाम लिख देता है तो इससे उसकी वसीयत संदिग्ध नहीं हो जाती। यह पूर्णतया वैध रहती है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए मृतक की पत्नी द्वारा दायर की गई याचिका खारिज कर दी। पत्नी ने पति की वसीयत को यह कहते हुए चुनौती दी थी कि जिसके नाम वसीयत की गई है वह पड़ोसी है और परिवार का सदस्य नहीं है। विश्वनाथ ने पड़ोस में रहने वाले अरुण के नाम अपनी सारी संपत्ति की वसीयत कर दी।
अरुण, विश्वनाथ और उनकी पत्नी की देखभाल करता था। वसीयत में कहा गया था कि उनकी मृत्यु के बाद अरुण पत्नी की देखभाल करेगा। पत्नी ने वसीयत को झूठा बताते हुए अदालत में चुनौती दी। उसने कहा कि पति उन्हें संपत्ति से महरूम नहीं कर सकते। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने इस वसीयत को सही माना और पत्नी की याचिका खारिज कर दी। मामला बंबई हाईकोर्ट गया।
हाईकोर्ट भी याची से सहमत नहीं हुआ और ट्रायल कोर्ट के आदेश को सही ठहराया। हाईकोर्ट ने कहा कि कानून किसी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के पक्ष में जो कि परिवार का सदस्य नहीं है, वसीयत करने से नहीं रोकता। सिर्फ इस बिना पर कि वसीयत परिवार के सदस्य के नाम नहीं की गई है, उस पर शक नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ पत्नी सुप्रीम कोर्ट आई। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एमआर शाह और एएस बोपन्ना की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया। आदेश में थोड़ा संशोधन कर दिया। कोर्ट ने अरुण को निर्देश दिया कि वह विधवा को साढ़े सात हजार प्रतिमाह गुजारा खर्चा देगा। यह खर्चा २०११ से लागू होगा। वह पिछला बचा हुआ ऐरियर गुजाराभत्ता 3 माह में अदा करेगा।