भोपाल, त्याग हमारी आत्मा को स्वस्थ और सुंदरतम बनाता है। त्याग का संस्कार हमें प्रकृति से मिला है। वृक्षों पर पत्ते आते


- पर्युषण पर्व में जिनालयों में उमड़ रहा श्रद्धा भक्ति का सैलाब
भोपाल। त्याग हमारी आत्मा को स्वस्थ और सुंदरतम बनाता है। त्याग का संस्कार हमें प्रकृति से मिला है।


वृक्षों पर पत्ते आते हैं और झड़ जाते हैं, फल लगते हैं और गिर जाते हैं, गाय अपना दूध स्वयं छोड़ देती है, अगर दूध स्वयं न छोड़े तो अस्वस्थता महसूस होती है। यह सारे उदाहरण हमें प्रेरणा देते हैं, त्याग हमें परिग्रह से मुक्ति दिलाता है। उक्त उद्गार चैक जैन धर्मशाला में आज त्याग धर्म के दौरान धर्मसभा में व्यक्त करते हुए मुनिश्री शैलसागर महाराज ने कहा हमें भारी वस्तुओं के त्याग के साथ-साथ भीतरी कषायों को भी कृश करना चाहिए।


ममत्व को घटाकर परिणामों में निर्मलता का आना ही त्याग का प्रयोजन है। त्याग में हमेशा आत्महित, समाजहित और राष्ट्रहित का ध्यान रखें। मुनिश्री ने कहा संग्रह से नहीं त्याग से जीवन में मिठास आती है। बाह्य द्रव्य के साथ-साथ अन्तरंग के राग के त्याग का नाम त्याग धर्म है। अपने अन्तरंग में राग द्वेष जब तक है तब तक त्याग की भावना नहीं आती है। इसलिए राग रहित वीतराग भाव को त्याग कहते हैं।


श्रद्धालुओं ने भक्तिभाव से भगवान जिनेन्द्र का अभिषेक कर अष्टद्रव्यों के साथ उत्तम त्याग धर्म की आराधना की। दिगम्बर जैन पंचायत कमेटी ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रमोद हिमांशु ने बताया कल उत्तम आकिंचन्य धर्म की आराधना होगी। पर्युषण पर्व का समापन 12 सितम्बर को उत्तम ब्रम्हचर्य धर्म के साथ होगा। अनन्त चर्तुदशी दसलक्षण पर्व के समापन के दौरान मंदिरों में विशेष धार्मिक अनुष्ठानों के साथ शोभा यात्रा निकलेंगी। इस दिन सभी जैन धर्मावलंबी निर्जल उपवास की साधना करते हैं।



नंदीश्वर जिनालय में हो रहे दसलक्षण पर्व में धार्मिक अनुष्ठान
नंदीश्वर जिनालय लालघाटी में दसलक्षण पर्व श्रद्धा भक्ति के साथ मनाये जा रहे हैं। प्रतिदिन प्रातः श्रद्धालु नंदीश्वर जिनालय में विराजमान भगवान जिनेन्द्र की प्रतिमाओं का अभिषेक कर विशेष पूजा अर्चना के साथ दस धर्मों की आराधना कर रहे हैं। मंदिर समिति के इंजीनियर सौरभ जैन ने बताया प्रतिदिन संगीतमय महाआरती के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है। प. निखिल भैया सागर के निर्देशन में धार्मिक अनुष्ठान हो रहे हैं।


आज पं. निखिल भैया ने उत्तम त्याग धर्म पर व्याख्यान देते हुए कहा धन की तीन ही गति मानी गई है दान, भोग और नाश। किसी को दे दिया, परोपकार की सेवा में लगा दिया तो ठीक अथवा उसका उपभोग कर लिया तो ठीक अन्यथा नाश तो होना ही है, पूजा में भी कहा गया है। ”निज हाथ दीजे साथ लीजे, खाय खोया बह गया“ अर्थात जो देता है वह पाता है, जो संग्रह करता है उसका सब यहीं पड़ा रह जाता है। जो दिया जाता है वह कीमती स्वर्ण जैसा कीमती हो जाता है और संग्रह कर लिया जाता है वह माटी बन जाता है।