भोपाल। आचार्य गूरूवर 108 श्री आर्जव सागर जी महाराज जी के सानिध्य के मंगल सानिध्य में चल रहे
चतुर्मास में सभी श्रद्धालु संयम श्रद्धा भक्ति में लीन हैं एवं समाज के अध्यक्ष ने बताया की ,आज बहार गुजरात,दमोह जिले से पधारे श्रद्धालुओं ने दिप प्रज्वलन किया तथा सभी श्रद्धालुओं आचार्य श्री विधासागर महामुनि राज जी के जयकारे लगाऐ एवं फिर सभी बहार से पधारे श्रद्धालु आचार्य श्री के दर्शन करने हेतु नेमावर के लिए रवाना हुए।
आज आचार्य श्री ने आशीष वचनों से बताया कि आज संसार में आज ध्यान की बहुत गूंज हो रही है।जगह जगह शिविर लग रहे हैं।ध्यान के बावत तरह-तरह की क्लासेस से और उसे लेकर भिन्न भिन्न तरीके के आयोजन हो रहे हैं।चूंकि आदमी बहुत तनाव व अशांति के दौर से गुजर रहा है,इसलिए ध्यान उन्हे मानसिक शांति देता है लेकिन क्या कभी सोचा है कि जो परमात्मा बनते हैं यानी परम आत्म सुख को प्राप्त कर पाते हैं,वह कैसे संभव है?
जब आप जिन मंदिर में जातें हैं,तब आपको वहां सभी जगह वीतराग भगवान ध्यानस्थ अवस्था में ही देखने को मिलते हैं कोई पद्मासन तो कोई खड्गासन की मुद्रा में नजर आएंगे,उनका यह शांतचित्त ध्यानस्थ स्वरूप हमें इस बात का प्रतिबोध देता है कि संसार के आवागमन से मुक्ति का मार्ग यही है।ध्यान रखना सम्यक् ध्यान से ही परमात्मा बनना संभव हो पाता है। ध्यान ही सर्वोत्तम तप है जिसके माध्यम से हम अपने शरीर की गुलामी को छोड़कर आत्म तत्व की खोज कर सकते हैं।
आचार्य श्री आगे बताते हुए कहा कि कहा संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं वे सब ध्यान के द्वारा ही अपनी अन्तर यात्रा कर महान बन पाए।संसार में आज भी साधु संत, तपस्वी,त्यागी और संयमी आत्माएं ध्यान व सामायिक के द्वारा ही अपने कर्मो की निर्जरा कर रहे हैं। गृहस्थ जीवन में रहने वाला भी ध्यान को यदि शुद्ध व सात्विक तरिके से करे तो वह भी निरोगी काया के साथ ही आत्म शांति पा सकता है।
आशीष वचन में आगे विराम देते हुए में कहा कि ध्यान के लिए क्या आवश्यक है ?यह समझना निहायत जरूरी है तो ध्यान के लिए द्रव्य क्षेत्र काल व भाव की शुद्धि निहायत जरूरी है तब जाकर हमारा ध्यान पवित्र व पावन हो पाएगा ,यदि जिसका आहार मांसाहार हो,शराब पीता हो उसका ध्यान कैसे पवित्र होगा? जिसमें दया है, अहिंसा है,गुरुओं के प्रति श्रद्धा है,करूणा भाव है ऐसी आत्मा ही सद्गुणों से पूर्ण होकर अपने ध्यान में लीन हो पाते हैं।