नई दिल्ली। उत्तरी निगम के सबसे बड़े अस्पताल हिंदूराव की इमरजेंसी में जान बचाने के लिए इस्तेमाल होने वाले एट्रोपिन इंजेक्शन में मिलावट का मामला सामने आया है। फिलहाल पता नहीं चल सका है कि इंजेक्शन में दिख रही चीज फंगस है या फिर कुछ और। गनीमत रही कि मरीज को लगाए जाने से पहले ही इसका पता चल गया।
जानकारी के अनुसार, ऑपरेशन थियेटर में नर्स को एट्रोपिन इंजेक्शन में काले रंग की कुछ मिलावट दिखी। उन्होंने तुरंत अपने वरिष्ठ साथियों और प्रशासन को इस बात की सूचना दी। इसके बाद अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक ने एट्रोपिन इंजेक्शन की सभी विभागों, वार्डों और इमरजेंसी में पहुंचाई गई खेप वापस मंगा ली है।
अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक ने सभी विभागाध्यक्षों, इमरजेंसी के प्रमुख और चिकित्सा अधिकारियों को सर्कुलर जारी किया है। इसमें अस्पताल में बैच संख्या एईआई 1810 वाले सभी एट्रोपिन इंजेक्शन को तत्काल इस्तेमाल से रोकने और इस बैच के सभी इंजेक्शन को वापस स्टोर रूम में जमा कराने का निर्णय लिया है।
सर्कुलर में लिखा है कि अगस्त 2018 में बनाए गए ये इंजेक्शन साल 2020 में जुलाई तक की एक्सपाईरी डेट वाले हैं। यानी अगर मिलावट सामने नहीं दिखती तो मरीजों के लिए यह इंजेक्शन जानलेवा हो सकता था। मौका रहते मिलावट पकड़ में आ गई।
एम्स के मेडिसन विभाग के प्रोफेसर नवल विक्रम के मुताबिक, एट्रोपिन इंजेक्शन सिर्फ इमरजेंसी में इस्तेमाल किया है। मरीज के दिल की धड़कन कम होने पर उसे तेज करने के लिए और कई मामलों में जहर के खिलाफ एंटीडॉट के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। विक्रम के मुताबिक, मिलावट वाले इंजेक्शन से संक्रमण से लेकर बुखार, घबराहट हो सकती है। उत्तरी निगम की कमिश्नर वर्षा जोशी ने कहा कि फिलहाल पूरे मामले की जांच कराई जा रही है।
प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि किसी ने जानबूझकर अस्पताल को बदनाम करने के लिए शरारत की है। फिर भी एहतियातन उस बैच के सभी इंजेक्शन को स्टोर रूम में ले लिया गया है। इंजेक्शन में फंगस होने के सवाल पर कहा कि जांच के लिए सैंपल भेजा गया है।
दिल्ली सरकार के अरुणा आसफ अली अस्पताल में इसी साल जनवरी में ग्लूकोज की बोतल में फंगस का मामला सामने आया था। प्रभावित बैच की सभी एक हजार बोतलों को वापस मंगाया गया था। केंद्रीय खरीद प्राधिकरण से मार्च 2018 में डेट्रोक्स नॉर्मल सेलाइन (डीएनएस) की एक हजार बोतलों की खेप अस्पताल को सप्लाई की गई थी।