लोकसभा चुनाव: गुरुग्राम से तय होगा ‘जीत-हार' का गणित (04 पीआर 48 ओआई)

गुरुग्राम। भाजपा प्रत्याशी राव इंद्रजीत सिंह के जीत के रथ को कांग्रेस कैप्टन रोक पाते हैं या नहीं। इसका पता तो २३ मई चलेगा, लेकिन २००९ की तरह एक बार फिर जीत-हार का फैसला गुरुग्राम के शहरी मतों से होगा। २०१४ में राव इंद्रजीत सिंह ने मोदी लहर के चलते २ लाख ७४ हजार से अधिक मतों से जीत हासिल की थी।


वहीं २००९ में वह ८४ हजार से अधिक मतों से जीते थे। २०१९ के चुनाव में गुरुग्राम के निर्णायक रहने की स्थिति बन रही है। चुनाव प्रचार में सिर्फ 7 दिन शेष रह जाने के बाद भाजपा-कांग्रेस ने जोर-आजमाइश शुरू कर दी है।


कांग्रेस ने मेवात में फिरोजपुर झिरका के विधायक नसीम अहमद और पूर्व मंत्री मोहम्मद इलियास को अपने पाले लाकर खुद को मजबूत करने की कोशिश की है तो भाजपा ने गुरुग्राम शहर पर अपना फोकस बढ़ा दिया।


गुरुग्राम लोकसभा क्षेत्र के कुल २१,३९,७८८ वोट में मेवात की हिस्सेदारी करीब २९ फीसदी है। मेवात के नूंह, फिरोजपुर क्षिरका और पुन्हाना में राव इंद्रजीत सिंह को कम वोट मिलती रही है। हालांकि पार्टी नेताओं को इस बार अधिक मतों की उम्मीद है।


पिछले चुनाव में नूंह विधानसभा में राव इंद्रजीत सिंह को १८.४९, फिरोजपुर क्षिरका में १३.४१ फीसदी और पुन्हाना में ११.४३२ प्रतिशत मिले थे। इसका कुल औसत १४.४० फीसदी रहा था। इस बार स्थिति थोड़ी बदली हुई है।



पार्टी को उम्मीद है पुन्हाना के निर्दलीय विधायक रहीशा खान के पार्टी में आने से मत प्रतिशत में सुधार होगा। कांग्रेस प्रत्याशी कैप्टन अजय सिंह यादव भी मेवात पर पूरा जोर लगाए हुए हैं। वोटों के हिसाब से देखें तो सर्वाधित मत बादशाहपुर विधानसभा में हैं इस मामले गुरुग्राम विधानसभा दूसरे और नूंह विधानसभा में सबसे कम मतदाता हैं।


२०१४ के लोकसभा चुनावों के बाद हुए विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी जीत गुरुग्राम शहर विधायक उमेश अग्रवाल ने हासिल की थी। उन्हें एक लाख छह से अधिक मत प्राप्त हुए थे और उन्होंने ८४ हजार मतों से विजयश्री प्राप्त की थी।


सूत्रों की मानें तो विधायक उमेश अग्रवाल को गुरुग्राम में व्यापक जन समर्थन जुटाने की काम सौंपा गया है। वहीं पटौदी में भाजपा विधायक बिमला चौधरी ने मोर्चा संभाला हुआ है। उन्होंने शुक्रवार को निगम के पार्षदों के साथ गोपनीय बैठक भी की। गुरुग्राम में शहरी मतदाता अधिक हैं।



चुनावी अखाड़े में अपना दम दिखा रहे विभिन्न पाटियों के प्रत्याशी भले ही दूसरे दलों से आने वाले नेताओं के कारण अपनी स्थिति पहले से अधिक मजबूत आंक रहे हैं, लेकिन यह स्थिति कुछ पार्टी प्रत्याशियों पर भारी भी पड़ रही है।


खासकर कांग्रेस इस स्थिति का सबसे अधिक सामना करती दिख रही है। कांग्रेस प्रत्याशी के साथ मेवात-गुरुग्राम से लेकर रेवाड़ी तक के वरिष्ठ नेता मंच साझा करने से कतरा रहे हैं। वहीं दूसरे दलों से आने वाले नए नेताओं के कारण पहले से प्रचार में जी-जान से जुटे समर्पित नेता और कार्यकर्ता बिदकने लगे हैं।